प्रमुख समाचार दिनांक 01.03.2024

हाईकोर्ट: तलाक के बाद भी पत्नियाँ कर सकेंगी घरेलू हिंसा मामलों की शिकायत

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया है। उन्होंने कहा कि शादी के बावजूद भी पत्नी घरेलू हिंसा का मुकदमा दाखिल कर सकती है। भले ही न्यायालय ने शादी को समाप्त किया हो, लेकिन धारा 12 के तहत दाखिल परिवाद पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

विवाह टूटने के बाद भी कोई महिला अपने पूर्व पति की ज्यादती के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है। घरेलू हिंसा कानून के तहत महिला को शिकायत दर्ज करवाने का अधिकार है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दिए गए ऑर्डर में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए यह टिप्पणी की।

राजस्थान हाईकोर्ट ने वैवाहिक संबंध के एक विवाद में निर्णय देते हुए कहा था कि घरेलू संबंध नहीं रह गए हैं, फिर भी यह किसी भी तरह से एक अदालत को पीड़ित महिला को राहत देने से नहीं रोकता है। सुनवाई के दौरान महिला के पति की और से पेश हुए हुए एडवोकेट दुष्यंत पाराशर ने दलील दी कि 2005 में लागू हुआ ‘प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट’, 26 अक्टूबर 2006 से लागू हुआ, लेकिन इस कानून को पहले से अप्लाई नहीं माना जा सकता।

उन्होंने दलील देते हुए कहा कि, ऐसा होने पर इसका मिसयूज हो सकता है। वकील ने दलील दी कि पति-पत्नी का रिश्ता अक्सर सीरियस नोट पर खत्म होता है ऐसे में एक्ट के प्रोविजन पहले से लागू करने को अलाउ किया जाता है तो इससे कटूता और ज्यादा बढ़ेगी और समझौत की संभावना कम हो जाएगी। हालांकि तमाम दलीलों के बाद भी कोर्ट ने केस में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।

उत्तर प्रदेश: अगले 7 साल में 71 नए फायर स्टेशन की स्थापना की जाएगी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बताया कि 1944 से 2011 तक 73 वर्षों में 288 फायर स्टेशन स्थापित किए गए थे। पिछले 7 सालों में 71 नए फायर स्टेशन स्थापित किए गए हैं। जल्द ही पूरे देश में उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य होगा जहां तहसील स्तर पर फायर स्टेशन होंगे। संकट के समय अग्निशमन सेवाओं की भूमिका सभी को पता है। 1944 में इसे महत्व देते हुए प्रदेश में एक विभाग का गठन किया गया। 1944 से 2017 तक, केवल 288 फायर स्टेशन स्थापित किए गए, लेकिन पिछले 7 वर्षों में 71 नए स्थापित किए गए। अब तहसील स्तर पर फायर स्टेशनों की स्थापना के लिए तेजी से काम किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को 38 अग्निशमन केंद्रों का लोकार्पण/शिलान्यास और 35 अग्निशमन वाहनों का फ्लैग ऑफ किया। उन्होंने विभाग की प्रदर्शनी भी देखी और अधिकारियों से उपकरणों की जानकारी प्राप्त की। उन्होंने कहा कि पिछले सात वर्षों में विभाग में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं और अधिकारियों की तैनाती की गई है।

यह सभी के सामने है। अब उद्यमी एनओसी की शिकायतें कम हो रही हैं। उन्होंने फायर टेंडर के रिस्पांस टाइम को भी कम किया है। उन्होंने कहा कि हर घटना से हमें कुछ सीखना चाहिए और इसे लोगों तक पहुंचाना चाहिए। हर व्यक्ति को अपने आप को तैयार करना चाहिए, ताकि जब कोई दुर्घटना हो, तो वह स्वयं भी अपने स्तर पर बचाव अभियान में सहायता कर सके।

शून्य भेदभाव दिवस: जातिगत हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी के बीच समानता की बातें

आज शून्य भेदभाव दिवस है। इसका मकसद इंसानियत, प्रेम व सम्मान से भेदभाव मिटाना है, खासकर जातिगत असमानता। लेकिन यह बुराई कम नहीं हो रही है। कानपूर के आंकड़े प्रकाशित हुए हैं, जिसके अनुसार 2017-18 में अनुसूचित जाति और जनजाति के उत्पीड़न के मामले 172 थे, जो 2022-23 में बढ़कर 621 हो गए हैं। इस साल फ़रवरी 2023 तक 582 मामले दर्ज हो चुके हैं।

दलित युवकों की डंडों से हुई पिटाई, दलित लड़की के साथ हुई रेप, और दलितों के मंदिर में घुसने पर रोक जैसी घटनाओं के बारे में सुनना नया नहीं है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या का मामला सामने आया है। इससे फिर दलितों के उत्पीड़न पर सवाल उठने लगे हैं।

हर साल कई ऐसी घटनाएं होती हैं जो दलितों के खिलाफ हिंसा की कहानी सुनाती हैं। राजस्थान में डंगावास में दलितों के खिलाफ हिंसा (2015), रोहित वेमुला (2016), तमिलनाडु में 17 साल की दलित लड़की का गैंगरेप और हत्या (2016), तेज़ म्यूज़िक के चलते सहारनपुर हिंसा (2017), भीमा कोरेगांव (2018) और डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या (2019) जैसे मामलों में देश भर में चर्चा हुई है। इसे बताने के लिए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हाल के आंकड़े उदाहरण माने जा सकते हैं। 2019 में अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

यहां 2018 में 42,793 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2019 में 45,935 मामले सामने आए। इनमें सामान्य मारपीट के 13,273 मामले, अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) क़ानून के तहत 4,129 मामले, और रेप के 3,486 मामले शामिल हैं।

न्यायपालिका ने दीवानी और अपराधिक मामलों में स्थगित आदेशों को बढ़ाया

दीवानी और अपराधिक मामलों में जिला अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए स्थगन आदेश अब 6 माह बाद अपने आप नहीं समाप्त होंगे। यह महत्वपूर्ण फैसला उच्चतम न्यायालय की 5 जजों की पीठ ने किया है। अब संबंधित अदालतों और पक्षकारों को यह संज्ञान में लाना होगा ताकि अदालत उचित आदेश पारित कर सके। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अब कोई अदालत की तरफ से आपराधिक और दीवानी मामलों में दिए गए स्टे ऑर्डर अपने आप छह महीने में खत्म नहीं होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक कि विशेष रूप से बढ़ाने का आदेश नहीं मिलता, स्टे को रद्द नहीं किया जाएगा। एक अन्य मामले में, ‘एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड’ के निदेशक बनाम सीबीआई के मामले में भी तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इसी प्रकार का फैसला सुनाया। उच्च न्यायालयों सहित अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन के अंतरिम आदेश, जब तक कि उन्हें विशेष रूप से बढ़ाया नहीं जाता, खुद ब खुद रद्द हो जाएगा। इससे अदालत को आवश्यकता है कि वे स्पष्ट आदेश जारी करें अगर वे स्थगन को बढ़ाना चाहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार के नौकरी के लिए बच्चों की संख्या पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार के फैसले को सही ठहराया है, जिसमें यह प्रावधान किया गया था कि जिनके 2 से अधिक बच्चे होंगे, वह सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य होंगे। शीर्ष अदालत ने राजस्थान विभिन्न सेवा (संशोधन) नियम 2001 को बरकरार रखा है। इसके अनुसार, यह कानून न तो भेदभावपूर्ण है और न ही संविधान का उल्लंघन करता है।

अदालत ने कहा कि राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा अधिनियम 1989 के नियम 24(4) में यह स्पष्ट है कि कोई भी उम्मीदवार सेवा में नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा जिसके 1 जून 2002 या उसके बाद से दो से अधिक बच्चे होंगे। राजस्थान में एक कानून है जिसके अनुसार दो से ज्यादा बच्चों वाले लोग सरकारी नौकरियां नहीं कर सकते। यह कानून 1989 में बनाया गया था।

अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार के इस नियम को बरकरार रखा जाए। एक पूर्व सैनिक रामजी लाल जाट ने इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की थी। उन्होंने 2018 में राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनका आवेदन निरस्त कर दिया गया था क्योंकि उनके दो से अधिक बच्चे थे। उन्होंने इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि इस तरह का प्रावधान संविधान के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह नियम परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के उद्देश्य के खिलाफ है। इसलिए, यह संविधान के दायरे से बाहर है।

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