IT ACT 66A क्या है ? जिसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में नहीं किया जा सकता केस?

क्या है IT ACT 66A ? जिसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में नहीं किया जा सकता केस?

IT ACT 66A

सुप्रीम कोर्ट ने IT act 66 A को साल 2015 में रद्द कर दिया था उसके बाद भी इस धारा में केस दर्ज किये जा रहे थे क्या है पूरा मामला जानिये | 

आज के दौर में अधिकतर लोग सोशल मीडिया का प्रयोग करते है | 

और हो भी क्यों न सोशल मीडिया के द्वारा हम कुछ ही सेकेंडो में दुनिया के किसी भी हिस्से से जुड़ सकते है | 

पुराने समय में जहां लोग एक दूसरे से संपर्क करने के लिए चिठ्ठी, खत लिखते थे वही आज लोग मोबाइल, कंप्यूटर के द्वारा एक दूसरे से वीडियो कॉल पर बात कर सकते है | 

ऐसे में बढ़ते सोशल मीडिया का प्रयोग सोशल क्राइम को भी बढ़ावा देता है | 

इस क्राइम को कण्ट्रोल करने के लिए एक IT act 66 A बनाई गयी | 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे हटा दिया | 

इस एक्ट की सम्पूर्ण जानकारी को जानने के लिए आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें |

क्या है IT Act 66 A ? 

इस एक्ट के द्वारा सोशल मीडिया पर होने वाले आप्पतिजनक कमेंट, उत्तेजक और भावनायें आहत करने वाली सामग्री डालने पर गिरफ्तारी का प्रावधान है | 

यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपमानजनक सच को प्रसारित करता है 

तो उस व्यक्ति पर IPC की धारा 499, 500 और 501 के अंतर्गत केस दायर किया जायेगा | 

और यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर झूठी खबर फैलता है 

अर्थात किसी व्यक्ति के खिलाफ जानबूझ कर असत्य बात सोशल मीडिया पर प्रसारित करने पर उस पर मानहानि का केस किया जा सकता है इस कम से कम दो वर्ष की सजा का प्रावधान है | 

इसके अलावा और भी क़ानूनी धारायें है जो सोशल मीडिया पर अपराध को रोकने में सहायक है |

धारा 469 

यदि कोई सोशल प्लेटफार्म पर झूठे दस्तवेजों के आधार पर झूठे और भ्रामक तथ्य को प्रस्तुत करता है |

इस मामले में उस व्यकित पर धारा 469 के अंतर्गत 2 साल की सजा का प्रावधान है |

धारा 153 A

आईपीसी की धारा 153A जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया पर सामाजिक, वर्ग, लिंग, जन्मस्थान, भाषा को लेकर अफवाह फ़ैलाने पर इसे एक संज्ञीन अपराध की श्रेणी में रखा गया है | 

इस कृत में लिप्त पाए जाने वाले व्यक्तियों को 5 वर्षो की अधिकतम सजा का प्रावधान है | 

धारा 298 

यदि कोई व्यक्ति जानबूझ कर किसी अन्य व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करता है | 

तो ऐसे में पुलिस में शिकायत करने पर उस व्यक्ति पर धारा 298 के अंतर्गत कार्यवाही की जाएगी | 

इस अपराध में शामिल व्यक्तियों को कम से कम 1 साल की सजा हो सकती है | 

पीड़ित पक्ष अपराधी पर मानहानि का भी केस कर सकता है |

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द की IT Act 66 A ?

IT act 66 A

साल 2012 में बाल साहब ठाकरे के निधन के बाद मुंबई में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था |

ऐसे में सोशल प्लेटफार्म पर इनकी मृत्यु से जुडी कई अफवाह फैलाई गयी | 

जब इस बात को लेकर पुलिस में शिकायत की गयी तो काफी पुलिस ने अफवाह फ़ैलाने वालों पर IT act 66 A के तहत मुकदमा लिखा |

उस समय कानून की पढाई कर रही श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया | याचिकाकर्ता ने धारा 66A को ख़त्म करने की मांग की | 

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया | 

कोर्ट ने कहा कि इस एक्ट के कारण संविधान के अनुच्छेद 19(1) (A) और अनुच्छेद 19(2) के नियमों का उल्लंघन हो रहा है | अतः IT Act 66A को रद्द किया जाये | 

सुप्रीम कोर्ट ने जताई आपत्ति 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी प्रकार की सामग्री या सन्देश 1 के लिए आपत्तिजनक हो सकता है सभी के लिए नहीं | 

ऐसे में इस एक्ट के जरिये व्यक्ति के बोलने की आजादी को रोका जा रहा है | 

यह एक्ट से व्यक्तियों को जानने का अधिकार समाप्त होता जा रहा है |

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर और रोहिंटन नारिमन की बेंच ने कहा 

कि इस कानून के कारण संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार प्रभावित होते है | 

जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि इस कानून के चलते व्यक्ति स्वतंत्रता के साथ सोशल मीडिया पर अपनी बात लोगों तक नहीं पंहुचा पायेगा | 

समाज के किसी भी प्राणी को स्वतंत्रता की जंजीरो में न बंधना पड़े इसलिए इस धारा का रद्द होना उचित है |

IT Act 66 A रद्द होने के बाद भी केस होते थे दर्ज 

सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर  काफी हैरानी हुई कि 6 साल पहले जिस कानून को असैंवधानिक करार करके रद्द किया गया था | 

देश में आज भी इस एक्ट में केस दर्ज किये जा रहे है | 

सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से इस विषय में बात की तो उनका कहना था 

कि कोर्ट ने भले इस एक्ट को रद्द कर दिया | 

लेकिन बेयर एक्ट में अभी भी धारा 66 A का वर्णन है |

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से 2 हफ्तों में जवाब माँगा है | 

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दोबारा कैसे आया 

PEOPLE UNION FOR CIVIL LIBERTIES (PUCL) ने इस मामले को दोबारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया | 

याचिकाकर्ता ने मांग की कि केंद्र सरकार IT Act 66 A में केस न दर्ज करने की एडवाइजरी जारी करें  

और सभी थानों को सूचित करें कि इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असैंवधानिक करार दिया गया है |

याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी अर्जी में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले के बाद भी भारत में हजारों मामले इस एक्ट के द्वारा है |

कोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की अर्जी स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया है और 2 हफ्तों में जवाब मांगा है |    

निष्कर्ष

हम उम्मीद करते है आपको हमारा यह आर्टिकल काफी पसंद आया होगा | भविष्य में ऐसी ही जानकारियों को प्राप्त करने के लिए हमारी वेबसाइट को विजिट करते रहे | आप अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य दे | धन्यवाद |

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