क्या आप जानते है कि कैसे हुई थी राजा बीरबल की मौत ?

birbal ki kahani

बचपन में birbal ki kahani तो आपने जरुर पढ़ी होगी, आज की कहानी उन सभी कहानियों से अलग होने वाली है, इसमें आपको बीरबल की बुद्दिमत्ता के कई उदाहरण दिए जायेंगे तो चलिए इस कहानी को पढ़ना प्रारम्भ करते है।

बीरबल का जन्म 

मुगल काल के महान राजा अकबर के दरबार में नवरत्न हुआ करते थे, उन्ही नवरत्नों में एक थे बीरबल। जिनका जन्म 1528 में कालपी, जालौन, उत्तर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बीरबल साहित्य से संबंध रखने वाले परिवार के वंश थे, इसलिए उन्हें कई भाषाओं और कविताओं में भी रुचि थी। birbal ki buddimani, गंभीरता और शांत व्यक्तित्व उन्हें सबसे खास बनाती थी और अपनी बुद्धिमता के कारण ही वो सारस्वत हिंदू भट्ट ब्राह्मण सलाहकार के साथ-साथ सम्राट अकबर के मुख्य सेनापति और प्रिय मित्र भी बने ।

बीरबल बड़ी ही चतुराई के साथ सच और झूठ के बीच का अंदाजा लगा लेते थे, अकबर के दरबार में लोग उन्हें उनकी चतुराई से जानते थे । बीरबल एक अच्छे इंसान होने के साथ-साथ अकबर के दरबार के सबसे बड़े दानवीर व्यक्ति भी थे।  आज के इस आर्टिकल में हम  बुद्धिमान, नेक दिल और चतुर बीरबल से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी आपको बताने आए हैं। तो आइए जानते हैं :

1. कैसे पड़ा बीरबल नाम ?-birbal ki kahani

बीरबल का वास्तविक नाम महेश दास भट्ट था। उनकी बुद्धिमत्ता और चतुराई को देखकर सम्राट अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में स्थान देकर अपने दरबार में प्रमुख वज़ीर और सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था। अकबर के प्रति बीरबल की वफादारी और समर्पण की भावना से खुश होकर अकबर ने उन्हें “वीरवार” की उपाधि दी। वीरवार बेताल पच्चीसी के तीसरी कहानी का एक मुख्य किरदार है जो अपनी वफादारी के लिए मशहूर था। वीरवार आने वाले समय में बीरबर और फिर उससे बीरबल बन जाता है।

2.अकबर बीरबल की मुलाकात कैसे हुई ?

एक कवि के रूप में birbal शुरुआत से ही बहुत लोकप्रिय थे। सबसे पहले कवि के रूप में उनकी ख्याति रीवा के महाराज रामचंद्र के पास पहुंची, जहां उन्होंने राज्य कवि के रूप में अपनी सेवा दी। इसके बाद उन्होंने जयपुर के राजा भगवानदास के यहां दरबारी कवि के रूप में काम किया। यहीं से अकबर को बीरबल के बारे में पता चला और 1556 में बीरबल अकबर के पास आ गए। birbal ki kahani (रचनाओं) से खुश होकर अकबर ने उन्हें कविराय की उपाधि दी। धीरे-धीरे अकबर बीरबल की चतुराई और बुद्धिमत्ता सें प्रभावित होकर उनके दीवाने हो गए और बहुत जल्दी उन्हें राजा की उपाधि से नवाजा। अपने जीवन के अंतिम काल तक बीरबल के पास अकबर द्वारा दी गई 25 उपाधि थी।

3. सबसे बड़े दानवीर व्यक्ति थे बीरबल :- birbal ki kahani

अकबर के दरबार में बीरबल सबसे बड़े दानवीर व्यक्ति थे। उन्हें सम्राट अकबर के द्वारा जब भी कोई इनाम मिलता, वो उन्हें गरीबों में बांट दिया करते थे। बीरबल बहुत ही नेक दिल थे, इसलिए उनसे गरीबों का दुख देखा नहीं जाता था। 

4.बीरबल इतने ज्ञानी कैसे बने?

बीरबल ने हिंदी, संस्कृत और फारसी भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी , इसके अलावा बीरबल ने गद्य लेख , ब्रज भाषा में संगीत और कविता में भी ज्ञान हासिल की थी। बीरबल बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे। उन्हें फारसी और संस्कृत दोनों भाषा में बहुत अच्छी पकड़ थी और संगीत की शिक्षा लेने के कारण birbal बहुत अच्छे गायक और कवि भी थे। वे अक्सर ब्रजभाषा में ” ब्राह्म “उपनाम से सारी कविता लिखा करते थे। अपनी शिक्षा में पारंगत हासिल करने के कारण बीरबल इतने ज्ञानी बने।

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5. क्या बीरबल भी मुसलमान थे?

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बीरबल का असली नाम महेश दास भट्ट था, उनके नाम से ही पता चलता है कि वह मुस्लिम नहीं हिंदू थे। 

बादशाह अकबर सभी धर्मों का समान रूप सम्मान करते थे, इसलिए उन्होंने 1582 में सभी धर्मों के मूल तत्वों को जोड़कर एक समरूप धर्म “दीन-ए-इलाही” बनाया। इस “दिन-ए-इलाही” धर्म के अंतर्गत हिंदू, मुस्लिम के अलावा फ़ारसी, जैन और इसाई धर्म के विचारों को भी शामिल किया गया। birbal ki kahaniyo में दर्शया गया है कि अकबर के चलाये गए “दीन-ए-इलाही” मुहीम को सबसे पहले स्वीकार करके वाले व्यक्ति बीरबल ही थे।

6. बीरबल के वंशज अभी कहां है?

बीरबल का जन्म स्थल भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में आता है, लेकिन उनके जन्म को लेकर आज भी कई मतभेद है। बीरबल को जन्म स्थल को कुछ विद्वान आगरा में बताते है , तो कुछ कानपुर के घाटमपुर तालुका को, तो कुछ दिल्ली और कुछ तो मध्य प्रदेश के सीधी जिले को बीरबल का जन्मभूमि मानते हैं। हालांकि अधिकांश लोग मध्य प्रदेश के सीधी जिले के घोघरा गाँव को birbal ka janm स्थान मानते हैं। 

कुछ लोग बीरबल के वंशज के रूप में बड़े सम्मान के साथ मध्यप्रदेश के सिधी जिले के पास घोगरे गांव में आज भी रहते हैं।

7. क्यों अकबर के सबसे करीबी थे बीरबल?

बीरबल की बुद्धिमत्ता और खूबियों से अकबर बहुत प्रसन्न रहते थे। अकबर के हर समस्या का समाधान बीरबल के पास जरूर होता था। बीरबल से बादशाह अकबर सभी प्रशासनिक, सेना और धार्मिक मुद्दों से संबंधित सलाह लिया करते थे। बीरबल की अच्छी रणनीति और एक कुशल योद्धा होने की वजह से ही अकबर ने पंजाब, गुजरात, बंगाल जैसे राज्यों पर अपना कब्जा हासिल किया था। बीरबल के आने के बाद akbar birbal की सलाह के बगैर कोई काम भी नहीं किया करते थे।

8. अकबर ने बीरबल के लिए क्या किया था खास?

बीरबल अकबर के लिए एक दरबारी से बढ़कर एक घनिष्ठ मित्र थे। अकबर ने अपने जान की परवाह किये  बगैर ही करीब 2 बार बीरबल को मौत के मुंह से बचाया था। अकबर के दरबारी में बीरबल ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जिसे अकबर ने अपने ही राजकीय प्रांगण में एक महल बना कर दिया था, ताकि दोनों आसपास रहे। फतेहपुर सीकरी में बीरबल का ये महल आज भी देखा जा सकता है। अकबर के फतेहपुर सिकरी महल में 9 दरवाजा है, जिसमें से एक birbal darwaja के नाम से जाना जाता था। अकबर के नौ रत्नों में से बीरबल ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो अकबर के साथ ही उनके महल में रहा करते थे। अकबर के साथ बिताए हुए अपने 30 साल के करियर में बीरबल को कभी भी अकबर के गुस्से का सामना नहीं करना पड़ा, ना ही उन्हें कोई सजा मिली।

9. बीरबल का परिवार :-

बीरबल पिता गंगा दास और माता अनाभा डेविटो के तीसरे सुपुत्र थे। उन्होंने एक साधारण कन्या उर्वशी देवी से शादी की थी, दोनों की एक पुत्री थी, जिसका नाम सौदामिनी था।

10. बुद्धिमान होने के बाद भी बादशाह क्यों नहीं बने ? birbal ki kahani

बीरबल जाति से एक ब्राह्मण थे और उनका परिवार बहुत ही गरीब था। शुरुआत में बीरबल पान के सौदागर थे, इसीलिए लोग उन्हें “पनवाड़ी” भी कहते थे। बीरबल बहुत दानवीर थे, इसकी चर्चा पूरे राज्य में फैली हुई थी। बीरबल हमेशा दूसरों की मदद करने में विश्वास करते थे और लोगों से निजी रूप से जुड़ाव रखते थे। उन्हें कभी भी राजा बनने की कोई लालसा नहीं थी। इसलिए इतने बुद्धिमान होने के बाद भी वह बादशाह नहीं बने।

11. birbal ki mritu कैसे हुई?

सन 1586 में जब अफगानिस्तान के युसुफजई कबिले पठानों ने मुगलो के खिलाफ विद्रोह किया था। तब अकबर ने जैन खान कोका के नेतृत्व में युसुफजई कबिले के खिलाफ अपना पहला सैन्य दल भेजा, लेकिन कोई खास परिणाम प्राप्त नहीं होने की वजह से जैन खान ने अकबर से और सेना के मांग की। तब अकबर ने 21 जनवरी 1586 को अपने योद्धा मित्र बीरबल के नेतृत्व में 8000 सैनिको के साथ दूसरे सैन्य दल को भेजा।

बीरबल के नेतृत्व में जीत हासिल कर जब अकबर की सेना 16 फरवरी 1586 में वापस लौट रही थी, तब कुछ देर बाद पहाड़ियों के पास पहुंचने पर birbal ने अपनी सेना को रात वहीं विश्राम करके सुबह जाने की बात कही। तब सेना में से एक शख्स ने कहा कि पहाड़ी दर्रे को पार कर लेंगे, तो अफगानों का खतरा हम पर नहीं होगा। शाम हो रही थी, इस वजह से बीरबल ने उसकी बात मानकर दर्रे की ओर सभी सैनिकों को साथ जाने का निर्देश दिया। जबकि दर्रे के ऊपरी पहाड़ियों पर ही अफगानी उनका इंतजार कर रहे थे। ज़ब बीरबल अपने सैनिकों के साथ दर्रे पर पहुंचते हैं, तब अंधेरा हो जाता है और इसी अंधेरे में बीरबल के नेतृत्व में आते हुए सैनिकों पर युसुफजई कबिले के पठानों ने अचानक से पत्थर, तीर और गोले या जो भी उनके पास थे, उससे आक्रमण कर दिया।

इस दौरान स्थिति ऐसी हो गई थी कि birbal और उनके सैनिकों को जान बचाने का अवसर भी नहीं मिल पाया और बीरबल के साथ सभी 8000 सैनिक मारे गए।

12. बीरबल के मौत के बाद अकबर पर असर

बीरबल के मृत्यु की खबर अकबर को अगले दिन मिली। तब अकबर ने उनके शोक में 2 दिन तक अन्न जल भी नहीं लिया था और कई दिनों तक दरबार में भी नहीं गए। बीरबल के मौत से अकबर लगभग कई महीनों तक सदमे में रहे। कहा जाता है कि बीरबल की मौत के बाद अकबर फतेहपुर सीकरी में भी कभी नहीं लौटे, क्योंकि उन्होंने वहां पर birbal के लिए भी एक किला बनवाया था और अपने वजीर के बिना वो वहां रहना नहीं चाहते थे।

दोस्तों, उम्मीद करते है आपको हमारा यह लेख “बुद्धिमान बीरबल के बारे में कुछ रोचक जानकारी” काफ़ी पसंद आई होगी । साथ ही आर्टिकल में उनकी ज्ञानवर्धक जानकारी ने भी आपका भी मनोरंजन किया होगा। यदि आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो, तो कमेंट जरूर करें और अपने दोस्तों के साथ इसे शेयर करें।

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