जादूगर ध्यानचंद के शिष्य ने हॉलैंड को हराया था, आज झोपड़ी के अंधेरे में बीतते हैं दिन

tek chand yadav standing
photo credits: indiatimes.com

tek chand yadav नाम से शायद ही आप परिचित न हों। लेकिन हॉकी के इस जादूगर ने भारत को वह उपहार दिया है, जो आज भी हमें गौरवान्वित करता है। इसलिये आज भी इन्हें भारत के सबसे उत्कृष्ट हॉकी खिलाड़ियों में गिना जाता है। जिन्होंने अपनी सफलताओं से हमेशा देश का सर ऊँचा किया है।

लेकिन आज वह गुमनाम हैं और दो रोटी के लिए मोहताज हैं। ये असलीत में बेहद दुखद है। ये हॉकी के सफलता के वक्त जिन्होंने देश का नाम रोशन किया था, आज उन्हें अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए लड़ना पड़ रहा है। 82 वर्षीय टेकचंद यादव आज टूटी-फूटी झोपड़ी में अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं क्योंकि उन्हें शासन-प्रशासन से मदद नहीं मिल रही है। टेकचंद हॉकी के जादूगर हैं, जो ध्यानचंद के शिष्य, हॉकी खिलाड़ी और रेफरी मोहरसिंह के गुरु भी हैं।

और इस गरीबी के कारण उन्हें 8 महीने पहले अपनी बेटी को खो देना पड़ा था। । उनकी पत्नी भी टीबी से पीड़ित थी और उन्हें इलाज के लिए कोई सहायता नहीं मिली। जिस कारण उनकी भी मृत्यु हो गयी। आइए, उनकी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए  tek chand yadav  के बारे में अधिक जानते हैं।

Tek Chandra Yadav जी का जन्म

श्री टेक चंद्र का जन्म एक मध्यवर्गीय व्यवसायिक परिवार में दिनांक 09 दिसंबर 1940 को मध्य प्रदेश के सागर जनपद में हुआ था। उनके पिताजी दूध का व्यवसाय करते थे। किसी तरह से वो अपने परिवार का पालन पोषण करते थे

tek chand yadav का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। अथक प्रयास के बाद उन्होंने मैट्रिक किया पर उसके बाद की शिक्षा को वो जारी नहीं कर पाए । हां श्री टेक चंद्र जी का मन खेलकूद की तरफ ज्यादा लगता था विशेष रूप से हॉकी। हॉकी से तो उनका लगाव नहीं बल्कि जूनून था। धन के अभाव में tek Chand yadav जी ने पेड़ की टहनी को ही हॉकी की स्टिक बना ली और आगे अभ्यास करने लगे। उनके इस जूनून को देख कर उनके पिता जी ने उन्हें एक हॉकी स्टिक लाकर दे दि।

tek chand yadav playing hockey
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इनके करियर की शुरुआत

निरंतर प्रयास और अभ्यास से श्री टेक चंद्र जी का खेल दिन पर दिन निखरता गया। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद जी ने उनका खेल देखा और उन्हें व्यापक स्तर पर ट्रेनिंग देना प्रारम्भ कर दिया। इस बीच श्री Tek Chand yadav जी ने जिला हॉकी एसोसिएशन की तरफ़ से खेलना प्रारम्भ किया। वो भोपाल, चंडीगढ़ जैसे शहरों में कई टूर्नामेंट खेले और अपने को एक अहम खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया। आगे चल कर वो मेजर ध्यान चंद जी की टीम के एक अहम खिलाड़ी बन गए। वर्ष 1960 के दसक में श्री टेक चंद्र जी एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी की तरह स्थापित हो गए थे।

Tek Chandra Yadav की उपलब्धियाँ

वर्ष 1961 में टीम के एक अहम खिलाड़ी के रूप में हॉलैंड जैसी टीम को रोक कर रखा था और टूर्नामेंट में जीतने का अवसर नहीं दिया। अपनी हॉकी के लिए श्री tek chand yadav जी इतना समर्पित थे कि हॉकी के अतिरिक्त कुछ और करने के लिए सोचा ही नहीं। हॉकी एसोसिएशन के डायरेक्टर के रूप मे कई वर्ष उन्होंने प्रतिनिधित्व भी किया। इस बीच वर्ष 1962 में उनके पिता का निधन हो गया।

जीवन में देखी काफी कठिनाइयाँ

उनकी पत्नी और बेटी का भी इस बीच निधन हो गया। श्री टेक चंद्र जी प्राइवेट जॉब किया पर जल्दी ही छोड़ दिया। आज वो 82 वर्ष के हैं तथा एकाकी जीवन एक झोपड़ी में बिता रहे हैं। दो रोटी के लिए मोहताज हैं। अपने समय का स्टार आज़ इस स्थित में है। सरकार की तरफ़ से कोई आर्थिक सहायता भी नहीं दी जा रही है, न ही कोई सामाजिक संस्था उनकी मदद के लिए काम कर रही है। हमारे देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है पर जरूरत है ऐसे सेलेब्रिटी की परवरिश करने की।

FAQ

प्रश्न – महान हॉकी प्लेयर Tek Chandra जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ? 

उत्तर – टेक चंद्र का जन्म 09/12/1940 को मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। 

 

प्रश्न – टेक चंद्र जी ने कहां तक शिक्षा हासिल की ? 

उत्तर – इन्होने अपनी पढाई मैट्रिक्स तक की इसके बाद इन्होने अपना करियर हॉकी खेल में बनाने का निर्णय किया, जिसके कारण इन्होने 10 वी के बाद शिक्षा ग्रहण नहीं की। 

 

प्रश्न – इन्हें हॉकी क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय पहचान कब मिली ? 

उत्तर – टेक चंद्र जी को वर्ष 1960 में अंतराष्ट्रीय हॉकी खिलाडी के रूप में पहचान मिल सकी। 

निष्कर्ष 

इस लेख में आपने महान हॉकी खिलाडी Tek Chandra Yadav जी के बारे में जानकारी हासिल की, उम्मीद करते है इस लेख को पढ़ने के बाद आपको इनके जीवन से काफी कुछ सिखने को मिला होगा, यदि आप आगे भी इसी प्रकार की रोचक जानकारियों से रूबरू होना चाहते है तो हमारी वेबसाइट को जरूर विजिट कर सकते है। 

धन्यवाद !

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