holi ka tyohar लेकर आया है प्रेम और भाईचारा

क्यों मनाया जाता है holi ka tyohar ?

भारत में हर त्योहार काफी धूम धाम से मनाया जाता है, और अगर बात की जाये होली की तो इसकी विशेषता से आप सभी परिचित होंगे, आज इस लेख में हम आपको बताने जा रहे है कि होली कब क्यों और किसलिए मनाई जाती है और इसके साथ ही आपको यह भी बताया जायेगा कि साल 2023 में holi ka tyohar आपके लिए क्यों है इतना खास, दोस्तों इस जानकारी को प्राप्त करने के लिए आर्टिकल में आखिरी तक जरूर बने रहियेगा।

होली कब मनाई जाती है

यह त्योहार बसंत ऋतु में मनाया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसर यह त्योहार फाल्गुन मास की तिथि पूर्णिमा में मनाया जाता है। इसे कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे फगुआ, धुलैंडी, छारंडी (राजस्थान), डोल। यह त्योहार पारंपरिक तौर पर दो दिन मनाया जाता है, पहले दिन होलिका जलाते हैं जिसके कारण इसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन रंग खेलते हैं जिसके कारण इसे धुलेंडी, धुरद्दी, धुरखेल या धुलिवेदन भी कहते हैं। लोग रंगों से रंगे ढोल मंजीरा के साथ नाचते गाते घर घर जा कर बड़े ही धूमधाम से holi ka tyohar मनाते हैं।

मिलकर मनाये holi ka tyohar

होली मुख्य रूप से हिंदुओं व नेपालियों का त्योहार है जिसे हिंदू, हिंदू प्रवासी, नेपाली, नेपाली प्रवासी मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि लोग पुरानी दुश्मनी भूल जाते हैं और गले मिलते हैं। दोपहर तक रंग खेलते है, फिर स्नान कर विश्राम करते हैं। शाम को नए कपड़े पहन कर आपस में मिलते हैं।

चूंकि यह त्योहार बसंत ऋतु में पड़ता है इसलिए इसे बसंत का संदेश वाहक भी कहते हैं। बसंत ऋतु में प्रकृति भी अपने शबाब पर होती है खेतों में सरसों लहलहा होती है, गेहूं की बालियां चटक रही होती है, बाग बगीचों में फूलों की छटा, पेड़ पौधों की हरियाली देखते ही बनती है । बड़े, बूढे सारे सँकोच छोड़ कर गाते बजाते और holi ka tyohar मनाते हैं। इस पर्व का खास पकवान गुझिया है जिसे मैदा खोया से बनाया जाता है। कांजी के बड़े भी खास पकवानों में से एक है।

होली का इतिहास

इस त्योहार के बारे में एक कहानी प्रचलित है जोकि हिरण्यकश्यप दानव राजा से जुड़ी हुई है। हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका माम होलिका था। उसे एक वरदान प्राप्त था कि वो कभी आग में भस्म नहीं हो सकती है। हिरण्यकश्यप के एक पुत्र था जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद बहुत ही धर्मिक प्रकृति का था और वो भगवान विष्णु का भक्त था। ये बात उसके पिता को अच्छी नहीं लगती थी। इस कारण से हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से रूष्ट रहता था।

होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाया

वह अपने पुत्र को बहुत समझाता था पर प्रहलाद उसकी बात नहीं मानता था। इस कारण से हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई तरीकों से मारने का प्रयास भी किया। अंत में उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाएगी। वरदान के कारण वो बच जायेगी और प्रहलाद मारा जायेगा। लेकिन आग पर बैठने पर होलिका तो जल गई पर प्रहलाद जिंदा निकल आया। तभी से लोग holi ka tyohar मनाने लगे। इस किवदंती से लोगों ने मान लिया कि होली का त्योहार बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

आर्यो की होली

होली का त्योहार प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। आर्य लोग इसे होलाका के नाम से मनाते थे। होलाका उस अन्न को कहते हैं जो खेतों में आधा कच्चा आधा पका होता है। लोग इसे जला कर हवन और प्रसाद के रूप में बांटते थे इस नई फसल को इस तरह से भगवान को अर्पित करने की परम्परा थी।

त्रेता युग में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था । इसकी याद में धुलेंडी के नाम से holi ka tyohar मनाया जाने लगा। होलिका दहन के बाद रंग उत्सव मनाने की परम्परा को भगवान श्री कृष्ण ने राधा के ऊपर रंग डाल कर शुरू किया था । इसे फगवाह के नाम से जाना जाता है।

दीवारों पर चित्रकारी के द्वारा होली

प्राचीन मंदिरों की दीवारों में की गई चित्रकारी से भी होली मनाने का वर्णन सामने आता है विजय नगर की राजधानी हम्पी में, अहमदनगर और मेवाड़ के मंदिरों में किए गए चित्रण से होली मनाने का आभास होता है। यह ज्ञात होता है कि 600 ईसा पूर्व में यह मनाया जाता रहा होगा। होली का वर्णन जैमिनी के पूर्वमीमांस। सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी मिलता है ।

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में विवाहित महिलाओं द्वारा holi ka tyohar परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हुए मनाया जाता था। वैदिक काल में इस पर्व को नवानैष्टि के रूप में मनाने का वर्णन मिलता है। इसे हवन के रूप में मनाया जाता था।

holi ka tyohar हर धर्म को जोड़ने का काम करता है

इस हवन में होला, जो कि खेतों में आधा पका फसलों के रूप में रहता है, को जला कर इस पर्व को मनाने का वर्णन भी मिलता है। बाद में इसे प्रसाद की तरह बांटा जाता था। मुगल काल में भी हिन्दू मुस्लिम मिल कर यह त्योहार मनाते थे इसका वर्णन फारसी धर्मज्ञ,विचारक, विद्वान अलबेरूनी ने अपने संस्मरण में किया है कि कैसे हिन्दू मुस्लिम मिलकर holi ka tyohar मनाते हैं। राजस्थान के अलवर शहर के एक संग्रहालय में मुगल बादशाह जहांगीर को नूरजहां के साथ रंग खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहां ने इस त्योहार को ईद ए गुलाबी कहकर मनाया था।

holi ka tyohar

होली मनाने के तरीके

होली का त्योहार अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। कहीं कहीं यह एक दिन मनाया जाता है तो कहीं कहीं तीन दिन चलता है। पहला दिन पूर्णिमा के दिन लोग अबीर गुलाल लगाते हैं। दूसरे दिन होलिका जलाते हैं और होली की पूजा करते हैं। उबटन आदि लगाकर उसके मैल को गोबर के कंडे के साथ गन्ने में बांध कर होलिका मे जला देते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे शरीर के सारे रोग अग्नि में जल जाते हैं। तीसरा दिन रंग खेलते हैं अबीर गुलाल लगाते हैं और गले मिलकर holi ka tyohar मनाते हैं। त्योहार मनाने का तरीका लगभग सबका एक जैसा ही है हां नाम स्थानीय लोग अलग अलग रख लेते हैं।

होली वर्ष 2023 की

इस वर्ष 2023 में 8 मार्च को मनाई जानी है। होलिका दहन 7 मार्च 2023 को हिंदू पंचाग के अनुसार किया जाएगा। होलिका दहन का समय अपरान्ह 6.29 बजे से अपरान्ह 8.54 बजे तक का है।

पूर्णिमा तिथि दिनांक 6 मार्च 2023 को अपरान्ह 6.09 बजे से लग जायेगी जोकि दिनांक 7 मार्च 2023 को अपरान्ह 6.09 तक रहेगी। पूर्णिमा तिथि के समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन किया जायेगा जिसका शुभ समय अपरान्ह 6.29 से अपरान्ह 8.54 तक है।

निष्कर्ष

वास्तव में holi ka tyohar प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि और प्रेम का भाव लेकर आता है इस लेख में आपको होली त्योहार की समस्त जानकारियों से रूबरू कराने की कोशिश की गयी, उम्मीद करते है हमारी यह जानकारी आपके लिए काफी उपयोगी साबित हुई होगी, ऐसी ही खास जानकारियोँ से रूबरू होने के लिए हमारी वेबसाइट को विजिट करते रहे।  

धन्यवाद ! 

FAQ

प्रश्न – holi ka tyohar कब मनाया जाता है ? 

उत्तर – हिंदू पंचाग के अनुसार यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। 

प्रश्न – महान सम्राट शाहजहाँ ने होली को क्या नाम दिया था ? 

उत्तर – शाहजहाँ ने इस पर्व को ईद ए गुलाबी का नाम दिया था। 

प्रश्न – साल 2023 में होली मनाने की शुभ मुहूर्त क्या है ? 

उत्तर- साल 2023 में होली 8 मार्च को मनाई जायगी, होलिका दहन का शुभ समय 7 मार्च को शाम 6 बजकर 29 मिनट से प्रारम्भ होकर 8 मार्च को प्रातः 8 बजकर 54 मिनट तक रहने वाला है।

Leave a Reply