
चंद्रमा पर मानवों को भेजने के बाद कई बार चंद्रमा की धरती का अध्ययन किया जा चूका है। जिसमें चंद्रमा पर कई बार ज्वालामुखी की प्रक्रिया होने के संकेत भी मिले हैं। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों ने हाल ही में चंद्रमा पर एक पुराने ग्रेनाइट के नए विशालकाय धब्बे की खोज की है, जो चंद्रमा की सतह के नीचे पनपा हुआ प्रतीत हो रहा है।
यह नया धब्बा न केवल चंद्रमा पर ज्वालामुखी की सक्रियता का प्रमाण दे रहा है, बल्कि एक नये प्रकार की ज्वालामुखी गतिविधि की पुष्टि भी कर रहा है जो इससे पहले अभी तक नहीं देखी गई थी।
चन्द्रमा की सतह कैसी है ?
वैज्ञानिको का मत है कि चंद्रमा की सतह काफी ठोस है जिसमें मैग्मा और बाथोलिथ तत्व की मात्रा काफी अधिक है। ऐसे सतहें पृथ्वी पर अक्सर वहाँ पायी जाती है जहाँ अक्सर ज्वालामुखी आते रहते है। इसलिए वैज्ञानिकों ने माना है कि चंद्रमा पर भी यह प्रक्रिया होना एक सामान्य बात है।
Huge granite 'body' on far side of the moon offers clues to ancient lunar volcanoes https://t.co/OOt8KoZIYS pic.twitter.com/4910bov9nn
— SPACE.com (@SPACEdotcom) July 9, 2023
चन्द्रमा पर बाथोलिथ की मात्रा अधिक
सॉउथर्न मेथडिस्ट यूनिवर्सिटी और द प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट के ग्रह वैज्ञानिक मैथ्यू सीगलर बताते हैं कि जब पृथ्वी पर ग्रेनाइट का विशाल पिंड दिखाई देता है, तो उससे यही पता चलता है कि उसे किसी विशाल ज्वालामुखियों ने पोषित किया होगा। यह एक ऐसे तंत्र के समान है जो उत्तर-पश्चिमी प्रशांत में ज्वालामुखियों की श्रृंखला द्वारा पोषित हो रहा है।
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मैथ्यू सीगलर ने इस बारे में विस्तार से बताया कि बाथोलिथ चंद्रमा की सतह पर पोषित होने वाले ज्वालामुखियों से बहुत बड़े आकार के होते हैं। इस तरह की संरचना को सीएनएसएन रेंज में स्थित सिएरा नेवादा पर्वत के रूप में भी जाना जा सकता है, जो वास्तव में बाथोलिथ है।
ये संरचना बहुत पहले पश्चिमी अमेरिका में ज्वालामुखियों की एक श्रृंखला से बनी थी। हालांकि, इस पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि बाहरी सौरमंडल में ग्रेनाइट बहुत ही दुर्लभ होता है क्योंकि इसके निर्माण के लिए विशेष परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। इसलिए चन्द्रमा की ठोस सतह ज्वालामुखी से निकलने वाले तत्व मैग्मा या बाथोलिथ से बना हुआ है।