क्या है सेंगोल (sengol)? जिसे नए संसद भवन में किया जायेगा स्थापित, सेंगोल का इतिहास, सेंगोल कहा पर रखा जाएगा

भारत के नए संसद भवन के संबंध में राजनीतिक टकराव जारी है। हालांकि, केंद्र सरकार इस उद्घाटन समारोह को आड़े-हाथों लाने का प्रयास कर रही है, लेकिन विपक्षी दलें इसे विरोध कर रही हैं।

इस बीच, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बताया है कि 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन होगा और उस समय ‘सेंगोल’ (Sengol) का अनावरण किया जाएगा। इससे पहले भारत के ‘राजदंड’ के रूप में ज्ञात सेंगोल के बारे में चर्चाएं प्रारंभ हो गई हैं, जिसे नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।

तो आइये इस लेख के माध्यम से इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते है।

सेंगोल क्या है ? (What is Sengol in Hindi?)

सेंगोल (Sengol) शब्द “सेम्मई” से प्राप्त हुआ है, जिसका अर्थ होता है “धर्म, सत्य और निष्ठा”।

सेंगोल एक स्मृति चिन्ह है, जो भारतीय सम्राट अशोक की प्रतिमा की आकृति में बना हुआ है।

इसका निर्माण रजत (चांदी ) धातु से किया गया है तथा इस स्मृति चिन्ह पर स्वर्ण धातु की परत भी चढ़ी जिसकी वजह से यह सोने जैसा प्रतीत होता दिखाई देता है।

सेंगोल को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है। जब अंग्रेजी साम्राज्य से तंग आये भारतीय लोगो को स्वतंत्रता की अनुभूति हुई तब इस राजदंड को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री को सौप कर उन्हें भेंट स्वरुप प्रदान किया गया था।

सेंगोल का सम्बन्ध चोल वंश से जब इसका उपयोग एक राजा से दूसरे राजा के पास सत्ता हस्तांतरित करते समय किया जाता था।

सेंगोल का इतिहास (History of Sengol in Hindi?)

जैसा कि आपको बताया गया कि सेंगोल का इतिहास तमिलनाडु के चोल वंश से है।

जब इसे चोल राजाओं के बीच सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता था। यह स्मृति चिन्ह एक राजा किसी दूसरे राजा के द्वारा सत्ता प्राप्ति करते समय भेंट स्वरूप स्वीकार करते थे ।

और उस समय विजय प्राप्त राजा के गौरव का प्रतीक माना जाता था तब से भारत के दक्षिण राज्यों में इसे पढ़ी दर पीढ़ी पारम्परिक तरह से संजोय रखा और आज वह दिन है ।

जब यह हमारे देश के नए संसद भवन में स्थापित किया जायेगा जिससे विश्व को भारत के ऐतिहासिक गाथाओं के बारे में जानने का अवसर मिल सकेगा।  

सेंगोल का निर्माण किसने किया ?

चेन्नई के प्रसिद्ध जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सेंगोल का निर्माण करने का कार्य सौंपा गया था, जिन्हें इस क्षेत्र में महारत हासिल थी। सेंगोल के निर्माण के बारे में बात की जाये तो इसे वुम्मिदी परिवार के दो सदस्य वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष में ) इसे बनाने में काफी योगदान दिया और ये दोनों आज भी स्वस्थ्य हैं।

चोल वंश से सेंगोल की मान्यता (Importance of Sengol in Chola Dynasty)

सेंगोल (Sengol) और चोल वंश के बीच गहरा संबंध रहा है। सेंगोल का इतिहास कई सदियों पुराना है और यह चोल साम्राज्य से संबंधित है।

ऐतिहासिक विद्वानों के मुताबिक, चोल साम्राज्य में सेंगोल का उपयोग सत्ता के बदलाव के लिए किया जाता था। जब सत्ता एक राजा से दूसरे राजा के हाथ हस्तांरित की जाती थी ।

तब वर्तमान राजा दूसरे राजा को सेंगोल सौंप कर उसे राजभार सौपता था।

इस परंपरा को चोल साम्राज्य से वर्तमान तक जीवित रखने में भारत के दक्षिणी राज्य अग्रणी है। 

सेंगोल का भारतीय संसद में सम्मिलन

सेंगोल (Sengol) को पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सत्ता स्थान्नतरण के समय सौपा गया था या फिर नहीं यह एक विवादित विषय है।

“द हिन्दू” में छपी खबर के अनुसार इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है।

परन्तु भारत सरकार द्वारा जारी एक वीडियो में यह बताया गया है ।

कि जब लॉर्ड माउंटबेटन ने 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू से पूछा, “सत्ता के हस्तांतरण कैसे करें? तो पंडित जी ने राजगोपालाचारी (राजाजी) से सलाह ली।

और राजाजी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेते हुए सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बनाया। क्योंकी चोला साम्राज्य में सेंगोल को अधिकार और शक्ति का प्रतीक माना जाता था।

पर जब हम ऍन. डी. टी. वि पर प्रकशित लेख को पढ़े तो उसमे साफ़ साफ़ यह लिखा गया है कि सेंगोल को 15 मिनट पहले थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के राजगुरु ने राजदंड माउंटबेटन को दिया और इसके बाद पूजा पाठ करने के बाद इसको पंडित जी को सौंप दिया गया।

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सेंगोल की खोज: एक रोमांचकारी प्रयास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को  करीब तीन वर्ष पहले सेंगोल के बारे में जानकारी बताई गयी थी ।

जिसके बाद उन्होंने इसके बारे खोजबीन जारी की और करीब देश के सभी संग्रहालयों में इसकी खोज करने के पश्चात अंत में इसे प्रयागराज के आनंद भवन में पाए जाने के संकेत मिले।

यह नेहरू जी परिवार का पैतृक आवास है। जोकि 1960 के दशक में, यह संग्रहालय में स्थानांतरित किया गया।

1975 में, एक शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया। वर्ष 1978 के बाद, कांची मठ के महान पेरियवा (वरिष्ठ ज्ञानी) ने इस घटना को अपने शिष्य को बताया। इसके बाद यह घटना प्रकाशित भी की गई।

हालांकि, पिछले वर्ष तमिलनाडु में आजादी के अमृतोत्सव के अवसर पर यह घटना एक बार फिर सामने आई।

नई संसद में सेंगोल की स्थापना कहाँ होगी

sengol at new parliamnet

संसद भवन के स्थानांतरण के बाद, संगोल को उत्कृष्टता और मान्यता के साथ स्पीकर के कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा।

गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी महत्वपूर्णता को पुष्टि की है और बताया है कि इसे किसी संग्रहालय में संजोया जाना अनुचित होगा।

संसद भवन ही एक ऐसा स्थान है जो संगोल के लिए सबसे उपयुक्त, पवित्र और योग्य होता है।

इसलिए, जब संसद भवन का निर्माण पूरा होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु से लाये गए संगोल का स्वागत करेंगे और इसे लोकसभा के अध्यक्ष के कुर्सी के पास स्थापित करेंगे।

चलते चलते

इस लेख के माध्यम से आपने सेंगोल के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया है।

साथ ही इस स्मृति चिन्ह के इतिहास और नई संसद भवन में इसकी स्थापना क्षेत्र के बारे में भी जाना है।

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