क्या आपने कभी सोचा कि धरती पर 71 फीसदी पानी कैसे आया आइये जानते है?

पानी

सौरमंडल में पृथ्वी को छोड़ कर बाकि अन्य ग्रहों पर पानी का न पाया जाना बेशक एक शोध का विषय है।  जिस पर दुनिया के कई वैज्ञानिक शोध कर रहे है।

पर वहीं, दूसरी तरफ पृथ्वी की सतह पर 71 फीसदी पानी का पाया जाना यह सवाल उठाता है कि धरती पर इतना पानी कहां से आया?

इस पर एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट और ग्रह विज्ञानी की अलग-अलग राय है।  कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि पृथ्वी पर पानी बाहरी स्रोतों द्वारा आया, जबकि कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पानी पृथ्वी पर क्षुद्रग्रहों के माध्यम से पहुंचा है। 

जबकि अन्य विचारधारी वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी ने खुद ही जलस्रोतों का निर्माण किया है।

पिछले कुछ दशकों में, इस मुद्दे पर कई अलग-अलग मत प्रस्तुत हुए हैं, लेकिन कोई भी सिद्धांत पूर्णता से स्वीकार्य नहीं माना जा सका है। अब वैज्ञानिकों ने हाल ही में अपने नवीनतम अध्ययन में एक नई जानकारी प्रस्तुत की है।

पृथ्वी के निर्माण के बाद कैसे हुई जल की उत्पत्ति

कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, पृथ्वी का निर्माण सूखी चट्टानों से हुआ है। इससे स्पष्ट है कि पानी हमारे ग्रह के निर्माण के बाद पहुंचा।

वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी का निर्माण लगभग चार अरब साल पहले हुआ था। वे धरती के निर्माण से जुड़ी गुथितो को सुलझाने के लिए पृथ्वी की गहराई में पाए जाने वाले मैग्मा की जांच कर रहे है।

मैग्मा पृथ्वी की सतह के नीचे पाया जाने वाला एक गर्म, पिघला हुआ चट्टानी पदार्थ है। इसका निर्माण तब होता है जब पृथ्वी के आवरण में अत्यधिक गर्मी और दबाव के कारण चट्टानें पिघलती हैं।

मैग्मा विभिन्न खनिजों और गैसों से बना है, और इसका तापमान कई हजार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।

जब यह सतह की ओर बढ़ता है, तो यह ज्वालामुखी विस्फोट का कारण बन सकता है। 

जिससे ज्वालामुखी का निर्माण होता है। जैसे ही मैग्मा ठंडा होता है, यह ठोस चट्टान बन जाता है।  जिससे विभिन्न प्रकार की आग्नेय चट्टानें बनती हैं।

मैग्मा से पता किया जायेगा पृथ्वी पर पानी के होने का रहस्य

डेलीमेल की रिपोर्ट के अनुसार, मैग्मा जो लावा में मौजूद होता है, धरती के कई रहस्यों का पर्दाफाश कर सकता है।

वैज्ञानिकों ने धरती की गहराई को विभिन्न हिस्सों में विभाजित किया है। जिसमें 15 किमी की ऊँचाई को अपर-मेंटल और 680 किमी की गहराई को लोअर-मेंटल कहा गया है।

वैज्ञानिक इसके विभिन्न परतों से नमूने लेकर धरती के निर्माण के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे ।

भूवैज्ञानिक डॉ. फ्रांक्वाइस टिसोट के अनुसार, पानी के इस रहस्य को जानने के लिए हमें अंतरिक्ष, उल्कापिंडों और छोटे ग्रहों पर भी अध्ययन करना चाहिए।

कुछ अध्ययनों की रिपोर्टों के अनुसार, धरती के निर्माण के साथ-साथ पानी का निर्माण भी हुआ है।

क्या धरती पर पानी का होना किसी रासायनिक क्रिया का संकेत ?

ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्यन में पाया कि धरती पर पानी एक रासायनिक क्रिया से उत्पन हुआ। 

उनके खोज के अनुसार, जब सौर पवन में मौजूद चार्ज पार्टिकल्स ने धूल के कणों की रासायनिक संरचना को परिवर्तित कर दिया। तब धूल के कणों में पानी बना। 

इससे पानी के अणु उत्पन्न हुए। इस प्रक्रिया को ‘स्पेस वेदरिंग’ कहा जाता है।

नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों ने बताया है कि पृथ्वी की महासागरों में पानी की संरचना को पैदा करना क्षुद्रग्रहों के स्रोतों के मिश्रण से बनाना चुनौतीपूर्ण है।

हालांकि, सौर पवन इस सवाल का जवाब हो सकती है। इसके अलावा, कुछ सिद्धांतों ने सुझाव दिया है कि महासागरों में उपस्थित ज्यादा पानी का कारण क्षुद्रग्रहों से हो सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, धरती पर कुछ पानी ‘सी-टाइप’ क्षुद्रग्रहों से आया हो सकता है।

Leave a Reply